Mental Health Problem: कौन से ग्रहों के कारण बच्चों को होती है मानसिक समस्या ? | SJ | Astro Tak

देखिए बहुत सारे बच्चे ऐसे होते हैं जिनका मानसिक विकास बड़ा कम होता है या जल्दी बोल नहीं पाते या जिनके मेंटल डेवलपमेंट में टाइम लगता है जिसको ऑटिज्म या माइल्ड ऑटिज्म कहा जाता है। ऐसा होता कब है? देखिए सामान्यतः कोई भी बच्चा हो दुनिया में जन्म से लेकर के 12 साल तक उसके ऊपर चंद्रमा का ही प्रभाव होता है। बच्चे की कुंडली का चंद्रमा अगर कमजोर हो या चंद्रमा दूषित हो तो मानसिक विकास में समस्या पैदा करता है और इसकी वजह से बच्चे का मन भी गड़बड़ होता है और बच्चे का स्वास्थ्य भी कमजोर होता है। कभी-कभी बचपन तो ठीक होता है लेकिन 12 वर्ष के बाद समस्याएं आने लगती हैं। यह समस्याएं बोलने में, चलने में और समझने में आती हैं। यानी अगर कोई बच्चा है और उसकी कुंडली में चंद्र की स्थिति अच्छी नहीं है तो शुरुआत में ही आपको अलर्ट हो जाना चाहिए। उस बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर उस बच्चे के मानसिक विकास को लेकर। देखिए हर बच्चा ऑटिस्टिक नहीं होता। हर बच्चे के मेंटल डेवलपमेंट में बाधा नहीं आती। तो आखिर क्यों कुछ बच्चों के अंदर यह समस्या पैदा हो जाती है? देखिए बच्चे के जीवन की शुरुआत होती है माता के गर्भ के अंदर। और गर्भावस्था में जब माता की प्रेगनेंसी चल रही है। उस दौरान पड़ने वाला हर प्रभाव बच्चे पर असर डालता है। प्रेगनेंसी के दौरान माता का स्वभाव और उसकी मानसिक स्थिति बच्चे को सीधे प्रभावित करते हैं। जितने समय बच्चा गर्भ में रहता है, उस समय में भी बच्चे पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता है। अगर ब्रह्मांड में ग्रहों की स्थिति प्रेगनेंसी के दौरान अच्छी नहीं है तो गर्भ से ही समस्याएं शुरू हो जाती हैं। और ऐसी दशा में बच्चे की मानसिक स्थिति कमजोर हो जाती है। जो महिलाएं प्रेगनेंसी के दौरान बहुत तनाव पालती हैं। बहुत चिंता में रहती हैं। जिनके परिवार का माहौल खराब होता है। उनके गर्भ पर इसका बुरा असर पड़ता है। और ऐसी स्थिति में जब बच्चा जन्म लेता है, तो बच्चे के मेंटल डेवलपमेंट में दिक्कत आनी शुरू हो जाती है। देखिए, बड़ा इंपॉर्टेंट फैक्टर है प्रेगनेंसी के 9 महीने। यह बड़े महत्वपूर्ण है भाई। और ज्योतिष में बताया गया कि हर महीने किस ग्रह का प्रभाव होता है और इसी हिसाब से आप देखिए कि हमारे संस्कार बनाए गए हैं। गर्भाधान से ले पुसवन तक जात कर्म तक तमाम संस्कार बनाए गए हैं। ताकि प्रेगनेंसी में बच्चे को किसी तरह की दिक्कत ना हो। तो उन लोगों के लिए बड़ा महत्वपूर्ण है जो संतान की प्राप्ति करना चाहते हैं या संतान का प्रयास करना चाहते हैं। वह लोग क्या उपाय करें कि मानसिक रूप से कमजोर बच्चा पैदा ना हो। गर्भावस्था के लिए सही समय का चुनाव करिए। ऐसे समय में प्रेगनेंसी के लिए मत जाइएगा जब बृहस्पति ब्रह्मांड में अच्छा ना हो। इस समय में प्रेगनेंसी के दौरान माता को अपनी मानसिक स्थिति का ध्यान रखना होगा। माता मेंटल डिप्रेशन से गुजर रही हैं। उनकी डिप्रेशन की दवाई चल रही है और उसी में कंसीव करेंगी तो बच्चे का मेंटल लेवल बुरी तरह खराब होगा। तो माता अपनी मानसिक शारीरिक स्थिति देख लें। जब वह ठीक हो तभी प्रेगनेंसी के लिए तैयार होइएगा। माता प्रेगनेंसी के दौरान धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करें। खासतौर से हरिवंश पुराण का अध्ययन करें और जिस भी देवी देवता में श्रद्धा है उनकी उपासना करें बहुत अच्छा होगा। और जो परिवार के लोग हैं उनकी भी जिम्मेदारी है। कि वो घर का वातावरण, घर का माहौल अच्छा रखें। जो गर्भवती महिला हैं वह सलाह लेकर सोच समझकर शुरू में ही 4 महीने छ महीने बीतने के बाद नहीं एकदम इनिशियली पहले महीने या प्रेगनेंसी के लिए जाना चाहती हैं तो उस समय सलाह लेकर एक पीला पुखराज या एक ओपल अगर धारण करें तो बहुत अच्छा होगा। फिर मैं कहूंगा कि जब तक महिला मानसिक और शारीरिक रूप से फिट नहीं है उसे प्रेगनेंसी का प्रयास नहीं करना चाहिए। अब मान लिया कि आपके घर में ऐसे बच्चे का जन्म हो गया जो ऑटिस्टिक है या माइल्ड ऑटिज्म है या बोलने में तकलीफ है। चीजों को समझने में रिसोंड करने में तकलीफ है। स्लो लर्नर है तो क्या उपाय करेंगे? बच्चे को सुबह उगते हुए सूर्य की रोशनी में कुछ देर जरूर रखिएगा। बच्चे की माता बच्चे के लिए शिव मंत्र का सुबह शाम जप करेंगी। ओम नमः शिवाय। सलाह लेकर के किसी ज्योतिषी से एक पेरीडॉट नाम का रत्न आता है। पेरीडॉट का एक लॉकेट बनवाकर बच्चे के गले में पहनाएं। और देखिए स्पीच थेरेपी, स्किल थेरेपी, बिहेवियरियल थेरेपी यह सब होती है तो बच्चे का नियमित रूप से थेरेपी कराते रहें और साथ में यह उपाय करें। 12 वर्ष तक बहुत गुंजाइश होती है कि अगर शुरू से माता-पिता उपाय करें या शुरू से माता-पिता इसको ठीक करने का प्रयास करें तो निश्चित रूप से सुधार हो जाएगा। देखिए आपको शुरुआत में बताया कि कोई भी बच्चा हो किसी भी लग्न का हो, किसी भी राशि का हो, जन्म से ले 12 साल तक उसके ऊपर सर्वाधिक प्रभाव होता है चंद्रमा का। और ज्योतिष में चंद्रमा का मतलब होता है माता। इसीलिए अगर आपका बच्चा मेंटली इंप्रूव नहीं हो पा रहा, बातचीत नहीं कर पा रहा तो ऐसी स्थिति में पूजा पाठ उपाय अगर मां करे तो वह ज्यादा प्रभावशाली होगा। मां अपने बच्चे के लिए मंत्र जप करें। मां अपने बच्चे की थेरेपी कराए। मां अपने बच्चे को बात करने की उसको संभालने की कोशिश करें। और सबसे महत्वपूर्ण बच्चे के सर पर हाथ रख के जितने बार दिन में हो सके आशीर्वाद दे कि बच्चे का मानसिक शारीरिक विकास बढ़िया तरीके से हो सके और बच्चा जीवन में बढ़िया से उन्नति कर सके। तो अगर मां उपाय करेगी अपने बच्चे के लिए देखिए पिता के उपाय करने से भी लाभ होगा। हम यह नहीं कहते कि पिता के उपाय से लाभ नहीं होगा। लेकिन अगर मां उपाय करेगी, मां प्रार्थना करेगी, मां बच्चे को आशीर्वाद देगी तो बच्चे की जो मानसिक दिक्कतें हैं, वो दूर होनी शुरू हो जाएंगी। अगर आप मुझसे जुड़ के अपनी समस्याओं का समाधान चाहते हैं और चाहते हैं कि आपकी समस्याओं को ज्योतिष के माध्यम से सुलझाया जाए तो आप हमसे संपर्क कर सकते हैं, जुड़ सकते हैं एस्ट्रो तक पर

Which planets cause mental problems in children | Mental Health Astrology : वैदिक ज्योतिष में मानसिक विकार और कारक ग्रहों का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है. ज्योतिष एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा आधुनिक विज्ञान भी मानसिक रोगी की मनोदशा भी समझ सकता है. आज इस देश में मानसिक रोग एक बड़ी समस्या बन चुका है, ऐसे में हम ज्योतिष के योगदान को नकारते हैं तो यह बड़ी भूल होगी. कुंडली के ग्रह व्‍यक्ति के जीवन के हर पहलू पर असर डालते हैं…आइए ज्योतिर्विद शैलेंद्र पांडेय जी से जानते हैं कि, कौन से ग्रहों के कारण बच्चों को मानसिक समस्या होती है ?…

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