Are You Overthinker Or OCD? What is OCD Symptoms | Test | Treatment | Medication | Aarogya Bharat

ऑबसेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर। ऑब्सेशन यानी कि एक थॉट जो बार-बार आता है और कंपल्शन उस थॉट को काउंटर करने के लिए एक हमें बार-बार एक अंदर से आवाज आती है कि यह एक्शन करो। पर जब यह उस हद तक पहुंच जाए कि आप सारा दिन सिर्फ यही कर रहे हैं। हमारी बॉडी रिएक्ट करती है कि घबराहट होती है और हार्ट बीट बढ़ जाती है, ब्रीदीिंग रेट बढ़ जाता है और हम ज्यादा चौकन्ने रहने लगते हैं। जो ओसीडी के पेशेंट्स होते हैं। तो इनके साथ एक सहानुभूति रखनी जरूरी है। इनकी इन यह समझने की जरूरत है कि यह किन चीजों से डर रहे हैं और इनकी मदद करनी चाहिए कि ये कैसे उस डर से बाहर निकल सकें। एक्चुअली शुरुआत ओसीडी की डर या एंग्जायटी से ही होती है। [संगीत] क्या आपको भी चादर के सलवटे को बार-बार ठीक करने की, हाथों को धोने की या चीजों को अरेंज और रिअरेंज करने की आदतें हैं? तो यह किसी गंभीर बीमारी की निशानी हो सकती है। आप सभी का स्वागत है हमारे चैनल आरोग्य भारत में। जहां हम आपको हेल्थ और फिटनेस के टिप्स देते हैं और एक्सपर्ट से बात करके आपकी बड़ी-बड़ी प्रॉब्लम्स का छोटा-छोटा सॉलशंस निकाल के देते हैं। और इसी कड़ी में आज हमारे साथ मौजूद है डॉक्टर आराधना मैम। मैम आपका बहुत-बहुत स्वागत है। मैम आज हम बात कर रहे हैं ओसीडी की जिसे हम ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर कहते हैं। तो मैं सबसे पहले आपसे यही जानना चाहूंगी कि यह होता क्या है? ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर। अब जब यह दो शब्द आप देखते हैं सुनते हैं। ऑब्सेसिव ऑब्सेशन यानी कि एक थॉट जो बार-बार आता है और कंपल्शन उस थॉट को काउंटर करने के लिए एक हमें बार-बार एक अंदर से आवाज आती है कि यह एक्शन करो तो वो कंपल्शन है। तो जब यह एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि जब हमारे रोजमर्रा की जो जिंदगी के काम हैं उसको ऑब्स्ट्रक्ट करने लगे या हम जो काम करना जो हमारे रूटीन के काम हैं उनमें करने के लिए हमें बाधा करने लगे तब यह डिसऑर्डर का फॉर्म ले लेते हैं। तो इसे कहते हैं ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर। मैम ऐसी कौन सी आदतें होती हैं जिनसे उसकी शुरुआत होती है और फिर ये बाद में जाकर के ओसीडी में कन्वर्ट होता है? ऐसा है जनरली जो जैसे आपने कहा चादरों की सलवटें ठीक करना या बार-बार हाथ धोना तो जनरली जो लोग बहुत मैटिकुलस होते हैं जो बहुत ऑर्गेनाइज्ड होते हैं ये चादर की सलवटें सही करना अपने आप में गलत नहीं है। अपने घर को अपने आसपास की चीजों को सलीके से रखना बहुत अच्छी आदत में आता है। पर जब यह उस हद तक पहुंच जाए कि आप सारा दिन सिर्फ यही कर रहे हो और जो आपको करना चाहिए उसके लिए आपके पास समय ही नहीं बच रहा एनर्जी नहीं बच रही तब यह फिर डिसऑर्डर के कैटेगरी में आता है। तो ऐसा कोई भी टिपिकल आदत या शुरुआत मतलब कुछ बेसिक तरह के लोगों को ही ऐसी प्रॉब्लम होगी। ऐसा कुछ नहीं है। जैसे कोविड के समय में बार-बार हिदायत दी जा रही थी कि हाथ धोइए, डिस्टेंस मेंटेन कीजिए, मास्क पहनिए। तो बहुत लोगों को बार-बार हाथ धोने की वजह से यह आदत में भी आ गया और वो डर देखिए ये सब कुछ जो है ना साइकोलॉजिकली इमोशन से जुड़ा होता है। जब डर इतना ज्यादा है जब ए्जायटी इतनी ज्यादा है तब यह प्रॉब्लम होने की संभावना बढ़ जाती है। मैम जैसा कि आपने कहा कि ए्जायटी से इसकी प्रॉब्लम्स और बढ़ जाती है। तो मैम हम ए्जायटी को और ओसीडी को कैसे कनेक्ट करते हैं? तो ए्जायटी क्या है कि किसी भी सिचुएशन को फेस करने में जब हमें डर लगता है और डर क्यों लगता है क्योंकि वो पहले हमने कभी किया नहीं है या हमें अपने ऊपर भरोसा नहीं है कि हम यह करने चलेंगे और हम सही कर पाएंगे और हमें गलती करने से डर लगता है। तो यह जब चीजें होती हैं तो वह जो हमारी बॉडी रिएक्ट करती है कि घबराहट होती है और हार्ट बीट बढ़ जाती है, ब्रीदीिंग रेट बढ़ जाता है और हम ज्यादा चौकन्ने रहने लगते हैं इन चीजों को लेके। इसे एंग्जायटी कहते हैं। और ए्जायटी किसी भी चीज को लेके हो सकती है। एग्जाम को लेके हो सकती है। लाइफ में कोई भी बड़ा चेंज है। हम नई नौकरी के लिए जा रहे हैं। हम हम कहीं शहर बदल रहे हैं। किसी भी नए अनुभव को लेके हम एशियस हो सकते हैं। पर ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर एक अपने आप में ए्जायटी से ही इसकी शुरुआत है। लेकिन यह तब है जब एक ही विचार हमें बार-बार परेशान कर रहा है। जैसे अ कुछ लोगों को डर होता है कि कहीं मेरे से गैस तो नहीं ऑन छूट गई। तो वो बार-बार जाके चेक करते हैं गैस का सिलेंडर गैस गैस ऑफ की या नहीं की। दरवाजे को ताला लगाया कि नहीं लगाया। तो यह तो थॉट है कि मैंने नहीं किया शायद। यह थॉट है। लेकिन जब वो थॉट इतना ज्यादा हमें परेशान करने लगे कि हमें लगता है कि हम जाके चेक कर लें एक बार और उसके बाद तसल्ली होगी। तो एक आम आदमी को भी यह हो सकता है कि हमने जाके चेक कर लिया। हां, ठीक है। एक बार चेक कर लिया किया था ना? हां, किया था तो तसल्ली हो गई। तो यह एक आम बिहेवियर है। लेकिन जब यह इस हद तक पहुंच जाए कि हमने किया आ गए फिर नहीं नहीं फिर जाके करेंगे। आ गए नहीं नहीं फिर जाके करेंगे तो यह ओसीडी का फॉर्म ले लेता है क्योंकि इससे फिर आप खुद परेशान हो रहे हैं। आपके आसपास के लोग भी परेशान हो रहे हैं और जिन चीजों में आपकी एनर्जी जानी चाहिए थी जो कामों को आपको प्रायोरिटाइज करना चाहिए था वो उनको आप नहीं कर पा रहे हैं। आपकी जनरल लाइफ फंक्शनिंग को इंपैक्ट कर रहा है। तो मैम जैसे कि ऐसा होता है कि हम जनरली जैसे टीवी शोज़ में देखते हैं या हम नॉर्मली बात करते हैं तो हम बात करते हैं कि ओसीडी का मतलब है कि हम चीजों को बार-बार अरेंज कर रहे हैं। या इसका मतलब है कि हमें जर्म से डर लग रहा है या फिर हमें आदत है कि हम हाथ धो रहे हैं। इसके अलावा ऐसे कौन-कौन से सिम्टम्स पे हमें ध्यान देना चाहिए ताकि हमें पता चले कि हम इनिशियल स्टेज ऑफ़ ओसीडी में है या किसी को ओसीडी की बीमारी है। देखिए बीमारी कोई भी साइकोलॉजिकल या साइकेट्रिक प्रॉब्लम को डायग्नोस करने के लिए वो कम से कम दो हफ्ते तक होनी चाहिए। अब मान लीजिए कोई किसी के घर गेस्ट आने वाले हैं। कोई इंपॉर्टेंट गेस्ट आने वाला है और वो मतलब मेरे गेस्ट पे मेरा इंप्रेशन अच्छा रहना चाहिए। तो वो बार-बार जाके फ्लावर्स ठीक कर रहे हैं। सोफा ठीक कर रहे हैं। तो ये एक जनरल ए्जायटी है और यह इतनी ए्जायटी बीमारी की श्रेणी में नहीं आती है। इसको तो हम नजरअंदाज करेंगे क्योंकि वो गेस्ट आए सब अच्छा रहा और हम भूलभाल गए। पर जो जिसका यह बिहेवियर का पैटर्न ही बन जाए तब दिक्कत है और उसका फिर इलाज होना जरूरी है। तो मतलब जैसे अगर हम सेम बिहेवियर है कि हम वास ठीक कर रहे हैं तो हम रोज वही चीजों को रिपीट कर रहे हैं। वो उसी वास को आपने दिन में 50 बार ठीक किया और वो हर दिन हो ही रही है वो चीजें रिपेटेटिव तब हम तब तब वो बीमारी की श्रेणी में आती है। मैम हम जैसे आपने इनिशियली भी बताया कि ऑब्सेशन और कंपल्शन दो अलग-अलग चीजें हैं। तो हम उन्हें सेपरेटली डिफाइन कैसे करते हैं? उनको डिफरेंशिएट कैसे किया जाता है? नहीं ऑब्सेशन एक थॉट है और कंपल्शन एक्शन है और थॉट के बाद एक्शन आता है। सो बेसिकली अगर हम ये समझें कि हमारे बिहेवियर का जेनेसिस क्या है? कैसे होता है? तो कोई पहले हमें एक ख्याल आता है, थॉट आता है। जैसे मान लीजिए आज आपने यह टॉपिक लिया है तो आपके मन में आया कि मुझे साइकेट्री को लेके कुछ एक प्रोग्राम बनाना है। तो आपके मन में विचार आया। उसके बाद फिर आपने क्वेश्चंस फ्रेम किए। पहले उसके रिसर्च की कि वो खुद क्या आपने समझा। फिर उसके बाद आपने सोचा कि किस गेस्ट को बुलाना है तो एक प्लानिंग की तो ऐसे ही ऑब्सेशन जो है वो एक थॉट की कैटेगरी में आता है और हमारा कोई भी बिहेवियर जब थॉट होता है उसके साथ एक इमोशन जनरेट करता है कि आपके मन में आया इस टॉपिक पे बात करूं अच्छा ये अच्छा रहेगा आपको अच्छा लगा फिर आपने बिहेवियर यानी एक्शन पे काम किया तो हमारे सारे बिहेवियर्स इसी पैटर्न पे चलते हैं। पहले थॉट आता है उससे रिलेटेड एक इमोशन आता है और फिर वो मोटिवेट करता है हमें एक्शन के लिए। तो जो वो जब वो नेगेटिव सेंस में चला जाता है तो फिर वो डिसऑर्डर का रूप ले लेता है। तो मैम साहब कह रही है कि एक थॉट से इसकी शुरुआत होती है। तो क्या हम ये भी कह सकते हैं कि ये मोस्टली ये होता है कि हमें एक थॉट आया फिर हम उसप ओवरथिंक कर रहे हैं। तो हम ओसीडी को वैसे कनेक्ट कर सकते हैं कि इट्स मोस्टली ओवरथिंकिंग आजकल ये वर्ड बहुत ज्यादा यूज़ हो रहा है। ओवरथिंकिंग हां हम लोग ओवरथिंक कर रहे हैं। और जब हम उस ओवरथिंकिंग में स्यूशन पे बात नहीं कर रहे केवल उस चीज को लेके चिंता ही किए जा रहे हैं तब प्रॉब्लम है। बट अगर हम सॉलशंस ढूंढ रहे हैं और उसको सॉल्व करके आगे बढ़ आगे बढ़ रहे हैं तो फिर वो कोई प्रॉब्लम नहीं है। मैम क्या ये हार्मफुल भी होता है किसी तरीके से? हार्मफुल इस तरह से होता है कि आपकी लाइफ जैसे थम जाती है क्योंकि वो रिपीिटेटिव है। क्योंकि आप उसी चक्र में फंसे हुए हैं। आप जीवन में आगे नहीं बढ़ पा रहे। तो हार्मफुल होता ही है इन द सेंस कि मैंने देखा है बहुत यंग बच्चे इस चक्रव्यूह में फंस के बहुत सारे करियर ओपोरर्चुनिटीज खो देते हैं। बहुत सारे सोशल रिलेशंस लूज करते हैं। बहुत सारा समय लूज करते हैं। तो अपने उम्र के लोगों से बहुत पीछे रह जाते हैं। बस ये नुकसान है और बाकी कोई पोटेंशियली मतलब आप कहें कि लाइफ थ्रेटनिंग या वो ऐसा तो कुछ नहीं है। अनलेस वह फिर एक और डिग्री पे चला जाए जहां आप पैरानॉइड हो जाए और आपकी रियलिटी चेक खत्म हो जाए। वह फिर अलग लेवल पे होता है। मैम जिसे आप कह रही है कि वो एक डिग्री बढ़ जाती है। तो बीमारी शुरू होती है तो वो सिंपली शुरू होती है। फिर मीडियम फिर हार्ड वो ऐसा होता है कि हम आगे बढ़ते जा रहे हैं। तो क्या इसका कोई ऐसा भी लेवल है जहां पे इंसान अपने सोचने की शक्तियों को खो दे? या ऐसा कुछ हो कि वो डिफरेंशिएट ना कर पाए कि उसे कौन सा एक्शन करना चाहिए? कौन सा नहीं करना चाहिए? देखिए जनरली क्या होता है शुरुआत हमेशा अ ए्जायटी से होती है और लो सेल्फ कॉन्फिडेंस से होती है। जब हमें कुछ भी करने की का आत्मविश्वास ही नहीं है कि हम कर पाएंगे। तो जैसे जैसे आपने कहा चादर की सलवटें आप सही कर रहे हैं या फ्लाव वास ठीक कर रहे हैं तो बहुत सारी गणियों को इस तरह से ओसीडी बोल दिया जाता है। होती नहीं है। पर बोल दिया जाता है। तो अब क्योंकि उन्होंने अपनी आइडेंटिटी, अपनी पहचान, अपने साफ सुथरे सुंदर घर को बना लिया है। तो इसलिए उनका सारा फोकस उस पे है। ठीक है ना? पर हां अगर उसके साथ-साथ वो अच्छी मेजबान हैं। वो अपने अतिथि का अच्छे से स्वागत करती हैं। 10 तरह के पकवान बनाती हैं और अपनी लाइफ में खुश हैं तो यह कहीं दिक्कत वाली बात नहीं है। प्रॉब्लम है जब वो सारा दिन केवल यही करती रहती हैं और किसी को बैठने नहीं देती कि आप इस बिस्तर पे नहीं बैठेंगे। मैंने अभी झाड़ा है। हम ठीक है ना? या तुमने ये गलत कर दिया इसको अगर यह रिमोट ऐसे रखना चाहिए तो ऐसे ही होना चाहिए। आपने ऐसे कैसे कर दिया? तो जब वो इतना करने लगे कि सामने वाले को टोका टाटा लगने लगे तब वो दिक्कत की श्रेणी में आएगा। तो इसलिए इसको अब यह होता क्यों है? यह भी समझने की जरूरत है कि जब हमें यह नहीं पता है कि हमारी इसके अलावा भी आइडेंटिटी है। जब हम इसके बिय्ड अपनी आइडेंटिटी नहीं क्रिएट कर पा रहे हैं। यह काम तो हो गया। अब आगे बढ़े। तो बहुत बार जो ऑबसेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर वाले लोग होते हैं या एशियस लोग होते हैं वो अपने जीवन की दिशा ही निर्धारित नहीं कर पाते। वो दूसरों को खुश करने के लिए काम करते रहते हैं और उस प्रशंसा के लिए ही जिए जाते हैं जो शायद कभी मिलती नहीं। तो इसलिए वो उनका एफर्ट उसके लिए और बढ़ता जाता है और फिर जब नहीं मिलती तो उनका आत्मविश्वास घटता जाता है। तो इस तरह से ये दिक्कत बढ़ती जाती है। फिर मैम से हम बात कर रहे थे कि मैं वापस से अपने क्वेश्चन पे आऊंगी कि क्या ऐसा कोई लेवल है इसका जहां पर इंसान अपनी रियलिटी से भटक के ये डिसाइड ना कर पाए कि उसका कौन सा डिसीजन राइट है कि नहीं है। ये लेवल डिफाइन करना बहुत मुश्किल है। लेवल का अह एक जो क्राइटेरिया है कि आपका रियलिटी चेक खत्म हो जाएगा। कि आप सच और इमेजिनेशन में फर्क करना भूल जाएं। वो है लेवल जब दिक्कत शुरू होगी। हां। अपने डिसीजंस को ही डिफाइन करना है। ओके मैम लास्ट क्वेश्चन क्या ये ट्रीटेबल है? मतलब किसी तरीके अगर जल्दी पकड़ में आ जाए तो डेफिनेटली ट्रीटेबल है। साइकेट्रिस्ट के पास जाएंगे तो उनके पास ऐसी दवाइयां हैं जिससे आपकी ए्जायटी कम हो सके और आपकी कंपल्शन एंग्जायटी कम होती है तो अपने आप थोड़ी सी कंपल्शन भी कम होती है। लेकिन इसका फ्लिप साइड यह है कि जैसे ही आपकी उस दवाई की उस डोज की आपकी बॉडी को आदत पड़ जाती है फिर यह दोबारा से होने लगता है। तो हमेशा जो एडवाइसेबल है के दवाई से आप एक्यूट सिचुएशन को सबसाइड करेंगे। उसके साथ में आप लेंगे साइकोथरेपी जिससे के आपका जो थॉट प्रोसेस है उस पे आप काम कर सकें और आप अपने सेल्फ कॉन्फिडेंस को बढ़ाने के लिए अ कुछ जद्दोजहद कर सके जो भी हर इंसान में कोई ना कोई खूबी होती है और दिक्कतें वहीं आती हैं जब इंसान अपनी खूबियां नहीं समझ के दूसरों जैसा बनने की कोशिश करता है और जब यह जागरूकता आ जाती है इंसान में कि मैं मेरी अपनी एक पहचान है और मुझे अपनी पहचान ढूंढनी है और बरकरार रखनी है और उसे और बेहतर बनाना है तो वो डेफिनेटली ठीक हो सकता है। मैम इससे मुझे एक और सवाल याद आ रहा है कि अगर हम उसे नहीं ठीक कर पाए या कोई है जैसे ओसीडी है तो हमें उनके साथ कैसे बिहेव करना चाहिए? बिकॉज़ बहुत बार होता है कि हम अपने थॉट्स को उनको देख के लिमिट नहीं कर पाते हैं। तो उसे हमें कैसे कंट्रोल करना चाहिए? तो जनरली ऐसा होता है जो ओसीडी जिनको होता है उनके साथ के लोग ना उनसे किनारा करने लगते हैं। चिढ़ से जाते हैं उनसे तो और उनको कई बार इल ट्रीट भी करते हैं उनको भला बुरा भी कहते हैं और और इग्नोर भी करते हैं कि भाई इस इसको नहीं पूछने की जरूरत। यह तो अभी ना बाथरूम में घुसा तो यह बहुत लोग होते हैं जो ना नहाने में दो-दो तीन-तीन घंटे लगाते हैं और जिन जगहों पे थोड़ा पानी की दिक्कत होती है तो वहां घर के सब लोग कहेंगे कि सबसे पहले तुम सबसे बाद में जाना पता चलेगा तुमने सारा पानी खत्म कर दिया किसी को पानी नहीं मिला तो ये इस तरह की दिक्कत होती है जो ओसीडी के पेशेंट्स होते हैं तो तो इनके साथ एक सहानुभूति रखनी जरूरी है। इनकी इन यह समझने की जरूरत है कि यह किन चीजों से डर रहे हैं और इनकी मदद करनी चाहिए कि ये कैसे उस डर से बाहर निकल सकें। एक्चुअली शुरुआत ओसीडी की डर या एंजायटी से ही होती है। पर क्योंकि हम लोग इसको पागलपन मान के इग्नोर कर देते हैं तो इसीलिए केवल दवाई पे जोर रहता है। बहुत बार मेरे पास जब पेशेंट्स आते हैं वो बहुत साल से दवाइयां ले रहे होते हैं। और जब थेरेपी में आते हैं उसके छ आठ महीने में वो बहुत काफी हद तक इंप्रूव कर जाते हैं। हालांकि 6 आठ महीने में पूरी तरह मैं कहूं कि मैं ठीक कर पाऊंगी। वो वो अपनी विल पावर पे होता है। एक्चुअली थेरेपी लेने वाले की विल पावर पे है। क्योंकि काम हमें खुद करना है अपने साथ। सिर्फ थेरेपिस्ट का काम आपको एक दिशा देना है। आपकी मदद करना है। तो जितना इंसान खुद अपनी प्रेरणा से आते हैं थेरेपी लेने उनमें डेफिनेटली सुधार होता है। थैंक यू सो मच मैम। इसी तरह के और जानकारियां पाने के लिए चाहे वो मेंटल हेल्थ को लेकर के हो, फिजिकल हेल्थ को लेकर के हो या फिटनेस को लेकर के हो। इसके बारे में जानने के लिए देखते रहिए आरोग्य भारत। [संगीत]

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